मेरी रेल यात्रा: संघर्ष के धुएं से सफलता की पटरी 2024 तक

संघर्ष
संघर्षशील व्यक्ति का काल्पनिक चित्र

हर यात्रा में संघर्ष और संकल्प का साथ होता है, और कुछ ऐसी ही कहानी है सुनील कुमार सरोज की, जिन्होंने अपनी मेहनत, दृढ़ निश्चय और अदम्य साहस के बल पर एक साधारण जीवन से असाधारण मुकाम तक का सफर तय किया।

चलिए, उनके जीवन के इस संघर्ष और प्रेरणादायी सफर को समझने की कोशिश करते हैं, जहां एक छोटे से गाँव के साधारण युवक ने भारतीय रेलवे के महत्वपूर्ण पद तक का सफर तय किया।

प्रारंभिक जीवन: संघर्ष की शुरुआत

25 अप्रैल 1982 को उत्तर प्रदेश के बेल्हा प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव रतियापुर में जन्मे सुनील कुमार सरोज का बचपन संघर्ष से भरा था। उनके पिता श्री बृजलाल सरोज रेलवे में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी थे और उनकी आमदनी इतनी नहीं थी कि वे अपने तीनों बेटों को उच्च शिक्षा दिला सकें।

मेरे पिताजी का वाक्य मुझे हमेशा याद रहता था वो कहते थे कि “बेटा तुम एग्जाम में फेल हो जाओगे तो मुझे कोई शिकायत नहीं होगी किंतु नकल करके पास होकर आओगे तो मुझे तो शिकायत होगी ही और वो तुम्हारे भविष्य के लिए ठीक नहीं होगा” और मैने पढ़ाई के दौरान वही किया, मैने किसी भी परीक्षा में नकल नहीं किया। और मैं कभी किसी भी अकादमिक परीक्षा में फर्स्ट क्लास नहीं पास हुआ।

सुनील अपने दोनों छोटे भाइयों और अपनी माताजी, श्रीमती कौशल्या देवी, के साथ गाँव में रहते थे, जहाँ उनका जीवन गरीबी के धुएं और संघर्ष के बीच बीत रहा था। उन्हें अपने परिवार के लिए खेतों और बगीचों से लकड़ी और गोबर इकट्ठा करना पड़ता था ताकि दो वक़्त का खाना बन सके।

शिक्षा और संघर्ष के बीज

इन कठिन परिस्थितियों के बावजूद सुनील के अंदर एक अद्भुत जोश था। वे न सिर्फ पढ़ाई में बल्कि हर गतिविधि में आगे रहते थे। अपने रिश्तेदार के सहयोग से उन्होंने बोर्ड की पढ़ाई के लिए अमेठी का रुख किया और फिर लालगंज से 10+2, सांगीपुर से स्नातक, और उसके बाद परास्नातक की पढ़ाई पूरी की। इन सभी वर्षों में, उन्होंने स्कॉलरशिप के सहारे अपनी शिक्षा को पूरा किया और गरीबी और उपेक्षा के बावजूद, अपने सपनों को साकार करने के लिए पढ़ाई में जुटे रहे।

रेलवे की ओर पहला कदम

शादी के बाद, सुनील का आकर्षण रेलवे की ओर बढ़ा। 2007 में उन्हें मुंबई RRB से ग्रुप डी में नौकरी का प्रस्ताव मिला, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। उनकी पहली पोस्टिंग बांद्रा डीजल लोको शेड में खलासी के पद पर हुई। काले तेल और ग्रीस में काम करना उनके लिए चुनौतीपूर्ण था, पर उनके अंदर कुछ बड़ा करने का सपना सुलग रहा था। अपनी लगन और मेहनत के दम पर उन्होंने रेलवे के उच्च पदों के लिए तैयारी शुरू कर दी, जिसमें उनके अधिकारी श्री संजय सांगोले और कुछ साथी उनका समर्थन कर रहे थे।

नौकरी के साथ अध्ययन: कड़ी मेहनत का दौर

सुनील अपने साथियों के साथ शाम को मिलकर पढ़ाई करते, लंच के समय ट्रेनों में बैठकर किताबें पढ़ते और रविवार को सामूहिक टेस्ट का आयोजन करते। सुनील की लगन और इक्षाशक्ति को देखते उनके माता पिता और उनकी पत्नी शिखा ने भरपूर साथ दिया। इस कठिन अभ्यास का परिणाम जल्द ही दिखने लगा, और 2008 तक सुनील ने रेलवे, SSC, नेवी, केंद्रीय विद्यालय, आदि सभी जगहों पर सफलता प्राप्त की। अंततः उन्होंने SWR हुबली डिवीजन में गुड्स गार्ड का पद चुना और सितम्बर 2009 में जॉइन किया।

अधिक ऊंचाइयों की ओर: स्टेशन मास्टर से चीफ कंट्रोलर तक

संघर्ष
नियंत्रक का काल्पनिक चित्र

अपनी लगन और कड़ी मेहनत के चलते, सुनील का संघर्ष सफर यहीं नहीं थमा। घर के नज़दीक आने की इच्छा में 2012 में वे प्रयागराज में स्टेशन मास्टर बने, 2016 में कंट्रोलर और 2018 में चीफ कंट्रोलर बने। अपने इसी सफर के दौरान उन्होंने अपने भाइयों को भी पढ़ाई के लिए प्रेरित किया, और आज वे भी सरकारी नौकरियों में कार्यरत हैं।

जीवन में सीख और बदलते कदम

सफलताओं के साथ, सुनील को अपने जीवन में कई गलतियों का भी एहसास हुआ। एक समय ऐसा भी आया था जब अत्यधिक महत्वाकांक्षा और विलासितापूर्ण जीवन जीने की आदत और गलत संगत ने उन्हें गलत दिशा में मोड़ दिया। फिजूल खर्ची, लोन और क्रेडिट कार्ड का अत्यधिक उपयोग, शराब और सिगरेट का सेवन जैसी आदतों ने उन्हें आर्थिक और मानसिक रूप से परेशान कर दिया। लेकिन समय के साथ उन्होंने इन गलतियों से सबक लिया और अपनी जीवनशैली को सुधारा। मेरे परम मित्र अभिषेक श्रीराम का मेरे जीवन में अतुलनीय योगदान रहा, वो सुख: दुख हर समय मेरे साथ रहते हैं।

जीवन की चुनौतियाँ और सीख

सुनील ने अपनी यात्रा में कई चुनौतियाँ भी झेलीं और उनसे सीख भी ली। एक समय था जब अत्यधिक महत्वाकांक्षा और विलासितापूर्ण जीवन ने उन्हें फिजूलखर्ची की राह पर धकेला, परंतु समय के साथ उन्होंने खुद को सुधारा। उन्होंने सभी प्रकार के लोन और क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल पर नियंत्रण पाया, शराब और सिगरेट का त्याग किया, और सरल जीवन शैली को अपनाया।

वर्तमान में प्रेरणा का स्रोत: IndianRailHub.com

आज सुनील अपने ब्लॉग IndianRailHub.com के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का कार्य कर रहे हैं। उनके इस ब्लॉग में रेलवे से जुड़ी सूचनाएं, सुझाव, और रेलवे से जुड़े लोगों के लिए मार्गदर्शन मिलता है।

सुनील ने अपने भाइयों विनोद और अखिलेश को भी मोटीवेट करके पढ़ाई में मेहनत कराई और वो भी इस समय सरकारी जॉब में हैं विनोद UPPCL में और अखिलेश सरकारी विद्यालय में प्रधानाध्यापक हैं। सुनील के मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन से उनके कई विद्यार्थी, साथी और रिश्तेदार आज सरकारी विभागों में अच्छे पदों पर कार्यरत हैं। उनके दो बच्चे, बेटा आदित्य और बेटी कल्पना अपनी पढ़ाई कर रहे हैं।

वर्तमान में सुनील कुमार सरोज अपने परिवार के साथ वाराणसी के सारनाथ में अपना निजी मकान बनवाकर रह रहे हैं और वहीं से अपनी ड्यूटी के लिए आवागमन करते हैं।

जितना सोचा और जिद किया उतना ही पाया

मैने अपनी समझदारी में जितना सोचा और जिस चीज की जिद किया वो मुझे निश्चित रूप से मिला बस मुझे अपने अवचेतन मन को सक्रिय रूप से अपनी चाहत का संदेश लगातार प्रेषित करना था। आप लोगों के मन में ये प्रश्न उठ रहा होगा कि मैं uppcs और upsc क्यों नहीं क्रैक किया तो इसका उत्तर ये है कि मैने न कभी uppcs और upsc के बारे में सोचा और न ही किसी ने सोचने पर मजबूर किया और न ही कभी सिविल सर्विसेज का फॉर्म भरा। इसलिए मेरे अवचेतन मन ने कभी इसकी प्रतिक्रिया भी नहीं की। अवचेतन मन की शक्ति के बारे में मैं अलग से ब्लॉग बनाकर प्रस्तुत करूंगा।

संघर्ष और प्रेरणा

सुनील कुमार सरोज का यह सफर एक प्रेरणा है उन सभी के लिए जो कठिनाइयों से घबराते हैं। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि यदि आपके पास सपने हैं, दृढ़ संकल्प है, और कड़ी मेहनत का जज़्बा है, तो आप किसी भी मंज़िल को पा सकते हैं। सुनील का यह सफर यही संदेश देता है कि सफलता उनके ही कदम चूमती है जो अपने सपनों को साकार करने के लिए हर कठिनाई को सहर्ष स्वीकार करते हैं।

सुनील कुमार सरोज का संदेश

“संघर्ष का सामना करने में कड़ी मेहनत सबसे बड़ा हथियार है। जीवन में कितनी भी कठिनाई क्यों न हो, अगर संकल्प सच्चा है, तो सफलता मिलकर रहेगी।” ये मेरी कहानी का संक्षिप्त वर्णन है, कहानी का पूर्ण विवरण मैं अगले ब्लॉग में प्रस्तुत करूंगा।

शुक्रिया!

इस कहानी के माध्यम से सुनील सरोज न सिर्फ अपने सपनों को हासिल कर रहे हैं, बल्कि अपनी यात्रा से दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं।

14 thoughts on “मेरी रेल यात्रा: संघर्ष के धुएं से सफलता की पटरी 2024 तक”

  1. अनुराग सिंह

    आप की एक सबसे बड़ी उपलब्धि ये है कि आप एक बेहतरीन और स्करात्मकत सोच इंसान हैं,

  2. सपनों की कोई उम्र नहीं होती, बस उन्हें देखने का हौसला चाहिए । बहुत ही प्रेरणादाय।🙏🙏

  3. इंसानियत के साथ कैरियर में सफल होना,
    अद्भुत

  4. इंसानियत के साथ कैरियर में सफल होना,

  5. Pingback: भारतीय रेलवे की पहली Hydrogen Train का परीक्षण दिसंबर 2024 में शुरू होने वाला है। इसकी विशेषताएं, गति और मार्

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